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एक नज़्म.....( तुम्हारे सिवा )

एक नज़्म.....( तुम्हारे सिवा )

आओ किसी  शब चांदनी का मचलना देखो,
मेरी तन्हा ज़िन्दगी को वीरानियों का नज़राना देखो।

यूं तो सब कुछ है ज़िन्दगी मे तुम्हारे सिवा,
आओ कभी मेरा तन्हा तड़पना देखो।

नाशाद दिल को कुबूल हैं नसीहतें सब की 
आओ कभी तिल-तिल मेरा उजड़ना देखो।

खो बैठे हैं हम तेरी तलाश मे खुद को,
आओ कभी ख़िज़ा में पत्तों का बिखरना देखो।

ख़ुशनसीब हैं हम जो ख़ुदा ने मिलाया तुमसे
आओ कभी सज़दों मे  मेरा सिसकना देखो।

आनन्द कुमार मित्तल , अलीगढ़

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7 Comments

वानी

11-Jun-2023 03:04 PM

Nice

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Abhinav ji

09-Jun-2023 08:35 AM

Very nice 👍

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सुन्दर और खूबसूरत अभिव्यक्ति

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